किसने फेंका है ठहरे पानी में पत्थर
हवा को बांधने की ज़ुर्रत की है
कौन उजाड़ रहा है घरोंदे चिड़ियों के
परिंदों को डराने की साज़िश की है
कमज़ोर नहीं हिन्द का चैन-ओ-अमन
सदियों की रवायतें इसमें शामिल हैं
नफरतों की आग में जो सेक रहे रोटी
न तो वो हिन्दू हैं न ही मुस्लिम हैं
फिर किसकी शै पर है ये फिरकापरस्ती
जेहन में ज़हर भरने की हिमाकत की है
इंसानी चेहरों के पीछे किन शैतानों ने
सदियों को साल बताने की कोशिश की है
किस पर इलज़ाम दें किससे करें शिकवा
शहर में काला पानी बरसा जो बीती रात
हसरतों से लगाए दरख़्त सब ढह गए
खाने को बचे सिर्फ जंगली कड़वे फल
आलम ये है कि पसरा है डर चारों ओर
जुबां पे ताले लगाने की हरकत की है
हम भी चुप हैं फेरकर सच से निगाहें
तूफ़ान ठहर जाने की ख्वाहिश की है