माफ़िक़ न सही हर रिश्ता निभाया है हमने
गैर ज़माना हुआ मगर साथ निभाया है हमने
आसान राहों से लोग छू लेते हैं आसमान
फ़र्ज़ की ज़मीं पर आशियाँ सजाया है हमने
लड़खड़ाए कभी गिरे मगर फिर चल दिए
ज़िन्दगी तेरा हर क़र्ज़ चुकाया है हमने
खुदा के वास्ते न करो ज़िक्र-ए-मंज़िल हमसे
बाकायदा राहों को मंज़िल बनाया है हमने
कोई तो बात है ज़िक्र अपना है हर ज़बान पर
चराग रोशन रहें घर अपना जलाया है हमने