बाजार

धरती के विशाल सीने में कहीं एक हलचल हुई
बीज फूटा कुछ बिखरा और आवाज़ चटक हुई

एक नन्हे से पौधे ने चीर डाला धरती का सीना
किसी की मेहनत खिली और रंग लाया पसीना

अंगड़ाई लेकर वह बढ़ चला आसमां की ओर
क्या जोश क्या उमंग ज़माने ने देखा उस ओर

देखे सपने कि देगा छाँव, लकड़ी और फल भी
लगने लगी बोली उसकी नस नस रग रग की

अपनी कीमत जानकर वह पौधा भी हैरान है
दुनिया में उसकी इतनी बड़ी पहचान है

घायल धरती का कोना जिसमें घाव लगा
वह बीज जो पौधे के अस्तित्व में मर मिटा

माली जिसने इस यथार्थ को मुमकिन किया
बाजार की ऊंची कीमत में सब बेमानी हैं

किसी के दर्द का एहसास कहीं खो गया है
पौधा फल लकड़ी फूलों में बंट कर रह गया है

उसे अब पेड़ बनकर बिकने के लिए जीना है
क्या सबब उसकी जड़ में किसका पसीना है

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