तन्हाईयों के महल में रहते हैं वो याद बनकर
कभी रहते थे दुआओं में जो फ़रियाद बनकर
वो था मंज़र फुर्सतों का ये हकीकतों का दौर है
वक्त गुज़र चुका है अब हमसफर कोई और है
हर शै है हासिल और सब अपने हैं साथ
तन्हाई में मगर रूबरू आ जाते हैं आप
ज़माना गुज़र गया है उम्र दराज हो गयी है
गुज़रे लम्हों की यादें ताज़ा और नई हैं
जहाँ में कहीं भी हों वो खुश रहें आबाद रहें
इल्तिज़ा है मेरी यादों के ताज महल में रहें