बाबूजी

कई कमरों का घर था जिसमें रहते हम और बाबूजी
अपने पसीने से उस घर को सींचा करते बाबूजी

उम्र के अंतिम दौर में रह गए सिर्फ अकेले बाबूजी
कुछ न किसी से कहते दिल की दिल में रखते बाबूजी

एक समय था जब हँसते ढेरों बातें करते बाबूजी
बच्चों के संग छुट्टी में शतरंज खेलते बाबूजी

सुबह उठाकर स्नान कराते मन्त्र सिखाते बाबूजी
माँ जब खाना दे देती तब हमें पढ़ाते बाबूजी

प्यार बहुत था दिल में लेकिन सदा छिपाते बाबूजी
बाहर गए तो हमें दूर तक छोड़ने आते बाबूजी

माँ गुजरी तो टूट गए बस फूट पड़े थे बाबूजी
माँ थी उनकी ताकत अब कमजोर हो गए बाबूजी

छूटे रिश्ते यार दोस्त अब कहीं न जाते बाबूजी
बंद कमरे में दीवारों से बातें करते बाबूजी

सब अपने हैं घर में लेकिन बहुत अकेले बाबूजी
सब की नियति दोहराते बैठे रहते हैं बाबूजी

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