मन का बालक

मेरे मन का नन्हा बालक तुमको माँ हर वक़्त बुलाये
चली गयी तुम कौन  जहाँ में किससे पूछूं कौन बताये

चल नहीं पाता हाथ पकड़कर तुम जो न पैंया चलवाती
गिर जाता जब भी मैं माँ गोदी में प्यार से मुझे खिलाती
दौड़ दौड़ अब पाँव थके हैं कोई मुझे न अब बहलाये

मेरे मन का नन्हा बालक तुमको माँ हर वक़्त बुलाये
चली गयी तुम कौन जहाँ में किससे पूछूं कौन बताये

मेरी छोटी जीत पर भी माँ तुम थी कितनी खुश हो जाती
हारा जब भी किस्मत से हिम्मत मेरी तुम थी बढाती
जीवन से फिर हार रहा हूँ ढांढस मुझको कौन बंधाये

मेरे मन का नन्हा बालक तुमको माँ हर वक़्त बुलाये
चली गयी तुम कौन जहाँ में किससे पूछूं कौन बताये

मेरे मन की तुम्हें पता है एकबार बस माँ आ जाओ
अपनी ममता के जादू से दुःख मेरे सारे ले जाओ
तेरे आँचल के साये में दुनिया के सब सुख हैं समाये

मेरे मन का नन्हा बालक तुमको माँ हर वक़्त बुलाये
चली गयी तुम कौन जहाँ में किससे पूछूं कौन बताये

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