जीवन है पार्थ एक महाभारत आरम्भ जो है तो अंत भी है
आरम्भ जो तेरे हाथ नहीं तो है अंत भी तेरे वश में नहीं
क्यों व्यर्थ ही शंका में भटका हे पार्थ तू निज गांडीव उठा
यह युद्धभूमि है कर्मभूमि रणकौशल बस कर्त्तव्य तेरा
मैं आदि में हूँ अनादि में हूँ वर्तमान भविष्य में मैं ही हूँ
तुझ में मैं, मैं प्रियजन में सब पितरों में केवल मैं हूँ
मरूंगा मैं मारूंगा भी मैं तू कर्म कर अपना धर्म निभा
यह युद्धभूमि है कर्मभूमि रणकौशल बस कर्त्तव्य तेरा
पंचभूत से प्रकट हुआ यह शरीर ही केवल नश्वर है
निराकार आत्मा हूँ मैं जो अजर अमर और शास्वत है
फिर किसके प्राण हरेगा तू पथ भ्रष्ट न हो संदेह मिटा
यह युद्धभूमि है कर्मभूमि रणकौशल बस कर्त्तव्य तेरा
आभार प्रभु स्वीकार करें चिर सत्य का प्रकाश किया
विमुख हुआ कर्त्तव्य से मैं उपदेश से मुझको ज्ञान दिया
खींची प्रत्यंचा तब अर्जुन ने रण नाद से अम्बर गूंज उठा
योद्धा अर्जुन सारथी कृष्ण रथ युद्धपथ पर तब दौड़ चला