एक किस्से से कई किस्से बनाये जा रहा हूँ
कुछ छुपाये तो कुछ बताये जा रहा हूँ
शर्मसार हूँ मैं खुद से कुछ इस कदर
कि आईने को झूठ दिखाए जा रहा हूँ
ख्वाबों को सजाया है खुली आँखों में
इरादों को इनसे ऊंचा उठाये जा रहा हूँ
अंजानी राहों पे रख चला हूँ दिल पे पत्थर
रिश्ते सब दिलों के भुलाये जा रहा हूँ
ताक पर रख दी है अब उमीदें तमाम
ताबीर से नए सवेरे सजाये जा रहा हूँ