नया एक बना था घर आलीशान
देखते थे उसे पापा पोता दादाजान
सोच में थे गहरी एक दूजे से अनजान
दादाजी के मन दबी में बात यह आयी
पूरी उम्र देकर यह इमारत बनायी
हिस्से में मगर बैठक की जगह पायी
खाक ! पूरी जिंदगी जाया ही गंवाई
बेटाजी के मन कसक यह थी समायी
पिताजी के रहते अपनी चल नहीं पायी
बीती जवानी जब यह खुशी हाथ आयी
क्या नसीब पाया और क्या करी कमाई
पोते की आँखों में चमक गज़ब थी आयी
दादाजी की दौलत और पापा की कमाई
शान-ओ-शौकत तमाम जब अपनी है भाई
क्या है सबब फिर क्यों करें कमाई
एक उम्र गुज़र जाती है घर एक बनाने में
मिलता है मगर एक कोना ही आशियाने में