वह गिर गया था सड़क पर टकराने के बाद
उसकी बाइक को मारा था बस ने आया उसे याद
बहुत दर्द था शायद कई हड्डियां टूट गयी थीं
सर में चोट थीं सड़क खून से भर गयी थी
साँझ ढले जनता दफ्तर से लौट रही थी
हर शख्स को घर लौटने की जल्दी थी
कुछ राहगीरों ने मदद का हाथ दिया था
उसे और बाइक को सड़क किनारे बिठा दिया था
दर की आड़ में याद आ रहा था उसे अपना घर
साठीक होता तो पहुँच जाता अब तक उधर
छोटी बेटी दौड़ कर दरवाजा खोलती
लिपट जाती गले से फिर हँसती बोलती
पत्नी के पास जाने से पहले माँ के पास जाता
कुछ उनकी सुनता कुछ अपनी सुनाता
बाबूजी रोज की तरह प्रवचन सुनाते
जो वे रोज करते हैं मिलते मिलाते
पत्नी को मिलता नई साड़ी देता
जो आज ही खरीद कर रखी है
वह कहती अजी इसकी क्या ज़रुरत थी
मेरे पास तो और भी कई रखी हैं
यह सोचकर उसकी आत्मा रो पड़ी
बदकिस्मती जो ले आयी थीं आखिरी घड़ी
डूबती साँसों के बीच कुछ आवाजें सुनी
‘अरे भाई उठाओ चलो अभी सांस चल रही है’
मगर किसको पता था ज़िन्दगी हाथ से फिसल रही है