तेरे आथित्य का मित्र मेरे आभार व्यक्त करता हूँ
मैं कृतज्ञ हूँ ह्रदय से निज भाव व्यक्त करता हूँ
तुमने जो भी मान दिया आतिथ्य निभाया
मन का कोना छूकर ह्रदय में स्थान बनाया
अंतर्मन से में अपने उदगार व्यक्त करता हूँ
मैं कृतज्ञ हूँ ह्रदय से निज भाव व्यक्त करता हूँ
तेरे संग संग गिरना उठना चलना सीखा
तेरे विश्वास पे कर विश्वास संभालना सीखा
अपने जीवन का मैं सार व्यक्त करता हूँ
मैं कृतज्ञ हूँ ह्रदय से निज भाव व्यक्त करता हूँ
कालांतर में विलग हुए हम बिछड़ गए थे
समय के अजगर हम दोनों को निगल गए थे
अब जो मिले हैं प्रभु का गुणगान व्यक्त करता हूँ
मैं कृतज्ञ हूँ ह्रदय से निज भाव व्यक्त करता हूँ
पुनर्मिलन में जो पल बीते वे अमूल्य हैं
आत्मतृप्त है निकल गए जो भाव शूल हैं
मैं बना सुदामा कृष्ण तेरा उपकार व्यक्त करता हूँ
मैं कृतज्ञ हूँ ह्रदय से निज भाव व्यक्त करता हूँ
तेरे स्नेह से गदगद नैनों में जो जल है
मेरे आत्म को सींच रहा अब प्रतिपल है
जीवन तेरा शुभ हो सदभाव व्यक्त करता हूँ
मैं कृतज्ञ हूँ ह्रदय से निज भाव व्यक्त करता हूँ