दिल ने चाहे थे फुर्सत के रात दिन
लम्बी मगर यह फुर्सत जानलेवा है
दरवाजे पर जो देता है दस्तक बार बार
सुना है वो मेहमाँ जानलेवा है
पंछी नदिया पवन सब बहार खुश हैं
सिर्फ इंसां का निकलना जानलेवा है
मिलो, मगर फासले से अगर जरूरी है
कि साँसों की सरसराहट जानलेवा है
भगाते भगाते कहाँ ले आई ज़िन्दगी
जो पाया उसे छूना ही जानलेवा है
बहुत बढ़िया लिखा है।
गैरों की क्या अब अपनी हाथों पर शक करते हैं,
बार बार चेहरे छूने की आदत,
अब अपना चेहरा भी छूने से डरते हैं।
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