ईंट गारे पत्थरों से तो मकां बना करते है, घर नहीं
खिलता बचपन, जवानी की महक
और छाँव बुढ़ापे की अगर शामिल नहीं
खिड़कियां और रोशनदान कहाँ खुद से झांकते है
नज़ारे बेजां हैं अगर शोख नज़रें शामिल नहीं
सोफे, बिस्तरे, गद्दे नींद इनकी कहाँ मोहताज़ है
बेमतलब सब हैं अगर नींद-ओ-ख्वाब शामिल नहीं
बैठकें बन जाती हैं पर सजती मेहमानों से है
बेमायने हैं हुज़ूर गर दौर-ऐ-बैठक शामिल नहीं
सीढ़ियां ज़रूरी हैं ऊपर जाने के लिए मगर
कामयाबी बेमतलब है अगर पसीना शामिल नहीं
तुम नहीं, तो मैं नहीं होगा मकां भी घर नहीं
संग अपने घर में खुशियां हों अगर शामिल नहीं
बहुत सुन्दर ✌💞
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