कहाँ गए वो दिन जब यार फ़ोन लगाते थे
वीकेंड पर साथ चाय का निमंत्रण दे जाते थे
प्लानिंग में ही बस बाकी वक्त बीत जाता था
भाभीजी की याद में सप्ताह यूँ बीत जाता था
उजले कपड़ों में सज आईने को लजाते थे
समय से पहले ही यार की घंटी जा बजाते थे
सजी संवरी भाभीजी का यूँ पानी लेकर आना
ठन्डे के साथ उनका स्माइल परोस जाना
कहते सुनते बातों में वक़्त यूँ निकल जाता था
चाय-पकोड़े और फिर से चाय का दौर चल जाता था
‘आपने तो कुछ लिया नहीं, लीजिये न भाईजान’
जादुई शब्दों पर होते कई डाइट प्लान क़ुर्बान
मिसेज की जलती नज़रों से बचते बचाते
पकोड़ों के कई राउंड हम चट कर जाते थे
अपने घर में हैं कैद, भाभीजी की यादें हैं बस
खूबसूरत यादों में डूबे सोचते रहते है बेबस
दिल पूछता है क्या भाभीजी से फिर मिल पाएंगे
आस कहती है ‘ज़रूर’, अच्छे दिन फिर आएंगे
Excellent……
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