पानी पानी

पानी पानी कैसा पानी खारा पानी मीठा पानी
गहरा पानी उथला पानी ठहरा पानी बहता पानी

सावन के महीने मैं कैसे रिमझिम बूंद बरसता पानी
फूलों की पंखुड़ियों पर से बनकर ओस सरकता पानी

पानी की महिमा अपार है आओ सुनाएँ अमृतवाणी
अनुभव मेरा क्योंकि मैंने घाट घाट का पिया है पानी

मिले खबर जो कोई ख़ुशी कीऑंखें छलकता देतीं पानी
लगती चोट कलेजे पर जो अश्रु बन बह जाता पानी

लज्जित हो यदि किसी बात पर घड़ों घड़ों पड़ जाता पानी
निर्लज हो इंसान अगर तो आँखों का मर जाता पानी

गुत्थी अगर सुलझ जाये तो दूध का दूध पानी का पानी
पकड़ा जाये कोई रंगे हाथ तो होना पड़ जाये पानी पानी

लालच आ जाये गर मन में मुंह में भर आता है पानी
बिगड़ जाये जो काम कोई तो किये कराये पे फिरता पानी

गलत करोगे दुनिया वाले बंद कर देंगे हुक्का पानी
तड़ीपार कर देंगे तुमको उठ जायेगा दाना पानी

पैसे की माया तो देखो शहरों में बिकता है पानी
लोग बहाते बात बात पर पैसा हो जैसे कि पानी

नहा ले गोरी पानी में जो हो जाती नमकीन जवानी
नींद उड़ा दे प्रेमी की गीली जुल्फ से गिरता पानी

चुगलखोर की बात न पूछो उनके पेट नहीं पचता पानी
नेता हो तो लोग देखिए तलवे धोकर पीते पानी

इसका पानी उसका पानी तेरा पानी मेरा पानी
कैसे बाँट दिया समाज को छूत अछूत का कहकर पानी

बेगारी के आलम में कच्चे घड़े पड़ जाता जाता पानी
स्वर्गबास हो जाने पर प्रियजन अर्पण करते पिण्डा पानी

अब क्या बोलूं वर्ना तुम भी हो जाओगे पानी पानी
लम्बी मेरी कविता पढ़ ली और मुझसे नहीं पुछा पानी

पानी को मैला मत करिए बूंद बूंद अमूल्य है पानी
बिन जल सुने खेत बावली बरसे जल हो जल थल पानी

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