गिरे मकान की मिटटी जब हटाई गयी
मेरे बचपन की उस में लाश दबी पायी गयी
ये है चूल्हा जिस पर माँ पकाती थी रोटी
अधजली लकड़ी यादें सुलगाते हुए पायी गयी
माँ के आंचल से खेलता एक बच्चा मिला
माँ जबरन उसे सुलाते हुए पायी गयी
जली अंगीठी को घेरे हाथ सेंकते बच्चे
पिता से कहानियां सुनते टोली पायी गयी
बाल्टी में पानी में डूबे कुछ ख़रबूज़े मिले
पापा लाये हैं,खा लो! माँ कहते पायी गयी
घर के आंगन में खेलते पड़ोस के बच्चे
चाची मिली थी उन्हें ढूंढने को आयी हुयी
खेल बच्चों के दम तोड़ते हुए चंद निकले
सजी गुड़िया दबी मिली जो थी बिहाई गयी
नन्हे जूते और , छोटे कपड़ों की कतरन
कहानी लिखने से लाचार पेन्सिलें पायी गयी
टूटी चूड़ी और चिमटियों के अवशेष मिले
जीती जागती एक सभ्यता दबी पायी गयी
अपनी माँ को पुकारता एक बछड़ा मिला
ऐसी बिछड़ी फिर देखी नहीं कभी आयी हुई
कटे हरे पेड़ की जड़ें घायल सापों की तरह
बदला लेने को फुंफकारती हुयी पायी गयीं
कर लो तैयारी दफन कर दो मेरा बचपन
लाश कांधों पे जाती नहीं अब उठायी गयी
Avneet Mishra बेहद खूबसूरत लिखते हैं आप।
LikeLike
Thanks Madam for support
LikeLike