जिस्म में एक सौ छह हड्डियां एकसाथ टूटने का दर्द मैं नहीं जानता मगर
दो सौ सत्तर रातें अनजाने किसी डर में रहने का इल्म है . . खैर जाने दो
खुश खबर मिलने से अब तक हर तल्खी मेरे हिस्से में आयी है मगर
तुम खुश रहो इतना ही बस चाहा मैंने और चुपचाप रहा . . खैर जाने दो
जानता हूँ मेरे सिवाय कोई नहीं जिसको तुम हाल-ए-दिल कह सको मगर
तुम ही कहो मैं अपना हाल किसे बताऊँ जो तुम न सुनो . . खैर जाने दो
तुम्हारी छोटी से छोटी ख़ुशी के लिए मैं हद से गुज़र जाना चाहता हूँ मगर
मेरी ख़ुशी किसमें है कभी तुम भी तो समझ जाओ न . . खैर जाने दो
यक़ीनन तुम्हारे दर्द का रिश्ता मेरे फ़र्ज़ के रिश्ते से बड़ा है रहेगा मगर
मेरे रिश्ते पर तुम्हारे सवालों का मैं क्या मतलब निकालूँ . . खैर जाने दो
चलो मान भी जाओ अब बस भी करो बहुत हुआ मैं गलत ही सही मगर
ज़िन्दगी यूँ ही कभी प्यार कभी तकरार में बीत जानी है अब जाने भी दो