श्री हरि नरसिंह अवतार

हे ब्रह्मदेव मुझे दो वरदान
हिरण्यकश्यपु को  दो अमरत्व दान
मेरा यदि हो मृत्युदाता
न हो कोई मनुष्य न कोई देव
न निर्जीव कोई न ही सजीव
घर के अंदर न बाहर ही
न पुरुष कोई न  हो स्त्री
न बारह मास में से कोई मास
न पृथ्वी पर  न ही आकाश
न दिन के समय न ही रात्रि
न अस्त्र से ही न कोई शस्त्र
मृत्यु को मेरा न हो संज्ञान
कृपा मुझ पर करो भगवान

हे ब्रह्मदेव मुझे दो वरदान
हिरण्यकश्यपु को अमरत्व दान

नरसिंह अवतार में श्री हरि ने
ब्रह्मा के निभाए सब वरदान
अभिमानी हिरण्यकश्यपु को
सुनाया यह दंड विधान

न मैं हूँ मनुष्य न कोई देव
नख मेरे सजीव न हैं  निर्जीव
मृत्यु मिलन तेरा चौखट पर
जो न अंदर है न बाहर ही
तीसरे वर्ष का  यह अधिमास
बारह मास का न कोई मास
न आकाश पर न ही पृथ्वी पर
मरूंगा तुझे रख जंघा पर
संध्याकालीन प्रहर मिलन
न रात्रिकाल न होता दिन

इतना कहकर प्रभु ने नख से
हिरण्यकश्यपु पर वार किया
मृत्यु आलिंगन प्रदान कर
भवसागर से तार दिया

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