निज दुःख तो देखे नहीं परसुख दुःख दे जाय
खुद को लाभ गिने नहीं ख़ुशी परायी सताय
भारत भूमि धन्य है घर घर डाक्टर होय
कोविड चिंता मर रहा असर काहे न होय
शर्माजी अति व्यस्त हैं कहीं न मिलने जाय
देखे लड़ाई पड़ोस में घण्टों देत बिताय
दुश्मन मर्यादा भली करे न पीठ पै वार
बिगरे काज हसे नहीं कहाँ सच्चा रिश्तेदार
यार बुलावें प्रेम से कबहुँ तो घर आ जाय
किसके भाग को रोयें हम पता बतावत नाय
माँ के रहते करत हैं मामा मौसी लाड़
माँ पीछे सुध लें नहीं भांजे भांजी कबाड़
प्रीतीभोज बसे प्रीत नहीं जलपान रहे नहीं पान
‘अतिथि देवोभव’ का सूत्र खोजे हिन्दुस्तान