बाप के रूपमें उसने उसे हमेशा
अपनी इज़्ज़त पर खतरा समझा
और कोशिशें की वह पैदा ही न हो
भाई के रूप में उसने हमेशा उसे
अपने से कमतर समझा और उसके
ऊपर हज़ारों पाबंदियां लगा कर रखीं
उसके घूमने फिरने पढ़ने लिखने
और यहाँ तक कि उसके हसने पर भी
परिवार और समाज कि रूढ़ियों और
परम्पराओ को निभाने के लिए उसे ही
हमेशा बलिदान देना पड़ता था
उसकी जगह या तो घर की रसोई में थी
य फिर गाय भैंसों के तबले में
अपनी किस्मत का गोबर ढोने के लिए
जब बड़ी हुई गाँव के मनचलों के भेष में
उसने उसे इतना सताया कि घरवालों ने
उसे घर ही में कैद कर दिया
जैसे कि पूरा दोष उसी का था
वह लाचार ऐसे ही जीती रही
मौन रहकर सहमे सहमे डर डर कर
घरवालों को उसकी शादी कर देने का
अब बहाना मिल गया था और इसलिए
आनन फानन में वह ब्याह दी गयी
उस शख्स के साथ जिसको कि
न तो उसने देखा था और न ही
उसके बारे में कुछ जानती थी
घरवालों ने साफ़ कह दिया था
कि अब वही तेरा घर है इसलिए
लड़कर यहाँ कभी वापस मत आना
वह डरी सहमी एक गाय की तरह
उसके पीछे पीछे चलती रही
गांव गांव शहर शहर उसके ज़ुल्म
और ताने सहते हुए क्योंकि डर कर जीना
और ज़ुल्म के खिआफ़ आवाज़ न उठाना
उसे घरवालों ने अच्छे से सिखा दिया था
अब यही डर उसकी नियति थी
तो वह सहती रही हर तरह का ज़ुल्म
बेबसी और लाचारी से क्योंकि
वह पढ़ी लिखी नहीं थी और इसलिए
एक वक्त की रोटी का भी खर्चा उठाना
उसके वश में नहीं था
आखिर एक दिन पति के रूप में उसने
उसे मार पीटकर घर से बहार निकाल दिया
यह कहते हुए की वह उसका
अब और खर्चा नहीं उठा सकता
सवाल अब यह उठता है कि
वह अबला अब जाए कहाँ और
खुद को कहाँ और कैसे छिपाए
ताकि वह उसकी नज़रों से बची रहे
क्योंकि वह मौजूद है आस पास ही
समाज के ठेकेदारों के भेष में उसे
नोचकर खा जाने को किसी गिद्ध
की हर तरफ से उसपर झपट पड़ने
और बर्बाद करने को तैयार है क्योंकि
उसके हाथों में ही समाज की बागडोर है