नारी की सृजनात्मक क्षमता अद्भुत है
प्रसव के साथ ही मातृत्व जग जाता है
संतान चाहे गोरी हो या काली, लड़का हो
या लड़की, सक्षम हो या फिर अक्षम
माँ के लिए सभी संतानें सामान होतीं हैं
वह सभी को समभाव से पालती पोसती है
मन के प्रसव के बाद कुछ कविताओं के
जन्म के साथ ही मुझमें भी बदलाव हुआ है
और यह अनुभव करने का अवसर मिला है
जैसा कि लोग कहते हैं मेरी कविताओं में से
कुछ अच्छी थीं कुछ काम अच्छी कुछ गद्य थी
और कुछ पद्य तथा कुछ छोटी और कुछ बड़ी
लेकिन कुछ कवितायें ऐसीं थी जो पूर्ण नहीं थी
और यह बात भी केवल मुझे ही मालूम थी
मेरा उनसे लगाव उतना ही था जितना कि
अन्य रचनाओं से क्योंकि वे अपूर्ण थी पर मेरी थीं
कई बार सोचा कि उन्हें त्याग दूँ क्योंकि
अधूरापन अशुभ माना जाता है
कई बार हिम्मत जुटाई मगर असफल रहा
मेरे भीतर के मातृत्व ने ऐसा नहीं करने दिया
और साथ ही मुझे बहुत क्रोध का अहसास होता था
अगर मेरे मन में गलत विचार आता था
आखिरकार मैंने मातृत्व भाव के चलते अपनी
सभी अधूरी कविताओं को उनका इलाज़ कर के
पूर्णत्व प्रदान किया जैसे कि एक माँ अपनी संतान को
पूर्णता देने के लिए हर संभव प्रयास करती है
आज मेरी सारी कवितायें यानी संतानें भली चंगी हैं