कबूतरों का जोड़ा

लेखक के घर की मुंडेर पर एक
जंगली कबूतरों का जोड़ा रहता था
लेखक उन्हें अक्सर अपनी खिड़की से
देखा करता  और उनकी दिनचर्या
पर हर दिन हैरान हुआ करता  कि
आखिरकार ये पंछी अपने दिन रात
कैसे गुज़ारते होंगे बिना टीवी, अखबार,
मोबाइल,लैपटॉप वगैराह

बिना नौकरी, रिश्तेदार, या मेहमानों के
उनका समय कैसे व्यतीत होता होगा
उनके न बोल पाने की क्षमता,या उनमें
भय या क्रोध का आभास न होना भी
लेखक को हैरान और परेशान करता था

आखिरकार लेखक के मन की जिज्ञासा
इतनी बढ़ गयी की पक्षियों का जोड़ा
उसके स्वप्न में आ गया और कहने लगा
“तुम्हारे मन में जो भी सवाल हैं पूछो
और हमारा पीछा छोडो’

लेखक पहले तो सकपकाया लेकिन
जल्द ही सहज होकर बोलने ही लगा था कि
कबूतर बोल पड़ा ‘ दिन हमारे भी चौबीस घंटे
के होते हैं, गिन मत ‘ लेखक अब तक संभल चूका था
उसने इंसानी अभिमान के साथ पक्षियों से कहा
‘मेरे पास समय बिताने और शान से जीने के
इतने साधन हैं कि पूरा दिन कब निकल जाता है
पता ही नहीं चलता, आखिर तुम्हारा समय
कैसे कटता है बिना साधनों के’
वह आगे बोला ‘ मेरे परिवार में बच्चे हैं
तथा और भी लोग हैं जो मिलजुल कर रहते हैं
अक्सर हम पार्टी किया करते हैं और नाच गाना
मौज मस्ती करते हैं’

और एक तुम्हारा जीवन है बिलकुल नीरस
सुबह उड़ जाते हो दाने की तलाश में
और शाम ढले वापस आ जाते हो खाली हाथ
थोड़ी देर जोड़े में बैठकर चोंच मिलते हो
पंख सहलाते हो और गर्दन नीची करके सो जाते हो
क्या थक नहीं जाते रोज रोज एक सी दिनचर्या से’

इस बार कबूतरी ने मोर्चा संभाला और लेखक से बोली
‘तुम्हारे पास बहुत कुछ है समय गुज़ारने को है न!
रिश्ते नाते यार दोस्त परिवार समाज धन दौलत
और बहुत सारे मनोरंजन के साधन, बात सही है
मगर इसके अलावा तुम्हार पास जो है उसका
ज़िक्र नहीं किया तुमने, यानी बीपी , शुगर, अवसाद,
घृणा , फ़िक्र धोखा,, ईर्ष्या, द्वेष, छल कपट, बैर
विश्वास का अविश्वास और अंधविश्वास आदि आदि’

लेखक को काटो तो जैसे खून नहीं
वह चुपचाप देखता रहा दोनों पंछियों की तरफ
चलते चलते जोड़े ने लेखक की तरफ देखा और
कहा ‘कभी देखा है किसी पक्षी को जिसकी मौत
दिल का दौरा पड़ने से या चिंता में हुई हो’

अगले दिन और उसके बाद भी लेखक देखता रहा
मगर खिड़की में वह जंगली कबूतरों का जोड़ा
फिर कभी नहीं दिखाई दिया

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