तुम को भी अच्छा लगता था
आनंद हमको भी आता था
दो नैनों का मिलन प्रिये
मन व्याकुल कर जाता था
वक्त ने जो उपहार दिए
हम दोनों ने स्वीकार किये
अब दौर अलग है उम्र अलग
अब जीना है अपनों के लिए
सास बनी हो जबसे तुम
और ख़ास अब हो गयी हो
रहती दूर हो मुझसे तुम
बहु बेटों में कुछ खो गयी हो
महकी बगिया के माली सा
करता हूँ रखवाली घर की
हम दोनों ही के कन्धों पर
जिम्मेदारी है इस घर की
मेरे माथे का हो गौरव तुम
सम्मान जो मेरा रखा है
यह सर्वदा बना रहे
मैंने इंतज़ाम कर रखा है
कुछ कैश है घर के लाकर में
दो बीस लाख की ऍफ़ डी हैं
मैंने संभाल कर सब चीजें
छोटे संदूक में रख दीं हैं
मैं रहूं सामने या न रहूं
ऐसे ही महकती तुम रहना
होगी उदास तो देखना तुम
भूत बन के सताऊंगा वर्ना