शरद पूर्णिमा की रात है हम तन्हा छत पर
पूरा चाँद आसमां पर है और चांदनी छत पर
याद आतीं हैं वो रातें जब हम तुम होते थे छत पर
न कहते थे तुम कुछ और होते थे चुप हम छत पर
आँखों से ही आँखों में हो जाती थी बातें छत पर
लाख अरमां लिए दिल में हम रह जाते छत पर
आज जुदा हो तुम दूर और हम पशेमां छत पर
पूनम की चांदनी मगर गवाही देती है छत पर
शरद पूर्णिमा की रात है हम तन्हा छत पर
पूरा चाँद आसमां पर है और चांदनी छत पर