आंसू बहे और न काँधे मिले
मुसाफिर सफर पर चल भी दिए
चीख-ओ-पुकार बस शोर हाहाकार
वक्त के उलटे पहिये में लाखों पिसे
वीरान बस्तियां बुजुर्ग मदहोश थे
देखती रहीं सहमी नस्लें आंसू पिए
बवंडर थमेगा तो मालूम होगा
पेड़ कितने और घर कितने उजड़े
मंज़र ज़माना यह भूलेगा नहीं
देना होगा हिसाब इंतज़ार कीजिये
समय की कसौटी पर खरा। दुखद पल,खूबसूरत कविता।
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Thanks sir
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