बरसों लहु पीता रहा नश्तर की तरह
मगर जब गया दर्द भी रुला गया
तेरे बगैर इतने तनहा हम हो गए
सिर्फ दर्द अपना था वो भी चला गया
दिल के रिश्तों में ख़ुलूस ओ कशिश ज़रूर रखना
रूठे हमदम से शिकवा ओ शिकायत अगर रखना
आते जाते दुआ सलाम की गुंजाइश ज़रूर रखना
वक्त के साथ रिश्ते फिर खिल जाएंगे यकीं रखना