मेरा गम कितना कम है

‘राह चुन ली है तूने जो, आसान नहीं है
वह जीत क्या जो खूं अगर कुर्बान नहीं हैं ‘

जब हम किसी भलाई के उद्देश्य में
जुड़ते है तो राह में मुश्किलें आतीं हैं
कई बार इन मुश्किलों के कारण
हमारे हौसले में कमी भी आती है
यही वक्त है जब हमें खुद को तथा
हौसले दोनों को संभालना पड़ता है

पर भलाई की राह आसान कब थी !
अवतारों की राह तो और भी दुर्गम थी
राम, कृष्ण, शक्तिमान ,कृष,बैटमैन,
स्पाइडरमैन तथा अपने हनु-मैन
क्या इनके जीवन में मुश्किलें कम थीं

हम भी ऐसे ही मिशन में शामिल हैं
जिसकी राह में ढेर सारी मुश्किलें हैं
न प्रोत्साहन ना तारीफ ना कोई इनाम
कम इनकम और बस काम ही काम

लेकिन हमारी सभी मुश्किलों से ऊपर हैं
उनके दुःख, परेशानी, तथा ज़रूरतें
जिनके लिए हम काम करते हैं
जिनके लिए, कम ही सही पर
आमदनी का इंतज़ाम करते हैं

उन्हें हमने देखा नहीं हैं ना ही मिले हैं
ना वो हमसे मगर उनसे हमारे रिश्ते हैं
इंसानियत के और मानवता के
और किन्हीं परिस्थितियों में
कुछ के लिए तो हम फ़रिश्ते हैं

बस इसी अंतिम उद्देश्य की खातिर
हम सब आपस में जुड़े हैं
जिसमें एक समुदाय के दुःख दर्द
हमारे कर्मों से सीधे तोर पर जुड़े हैं
आप भी किसी के फ़रिश्ते हैं

‘मदद की राह में चलते चलते
चप्पल टूट जाने की परेशानी
काफूर हो गयी जब देखा
एक शख्स खिसक रहा था
और उसके पाँव नहीं थे’

मेरा गम कितना कम है

Posted on