बड़ा शहर बड़ी सड़क के किनारे जो उग आया है तू
अपनी तोतई और नाज़ुक रंगत पर जो इतराया है तू
तुझे मालूम नहीं है पेड़ पीपल के कि लावारिस है तू
पेड़ नन्हे अरे पीपल के भला कहाँ उग आया है तू
न तो सींचेगा तुझे कोई शख्स और न पानी पूछेगा
आते जाते कोई इंसां या जिनावर पाँव जो रख देगा
टेंटुआ तेरा दबा जाएगा भोले किस ख्याल में है तू
पेड़ नन्हे अरे पीपल के भला कहाँ उग आया है तू
हर गुज़रती गाडी के धक्के से ही छाती थम जाती है
लहरती पत्तियां यूँ ही घबरा कर जड़ को छू जाती हैं
आखिर कितने दिन सह पायेगा क्या सोचता है तू
पेड़ नन्हे अरे पीपल के भला कहाँ उग आया है तू
थपेड़े सह भी लिए तो दम घुट के तू मर जाएगा
धूंआं इस कदर है कि कैंसर तो हो ही जाएगा
अल्लाह के दर तकदीर क्या लिखवा लाया है तू
पेड़ नन्हे अरे पीपल के भला कहाँ उग आया है तू