कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानमती ने कुनबा जोड़ा
इसमें कुनबा ही नालायक था भानमती का दोष नहीं
कुनबे से इसलिए जुडी क्योंकि ब्याह कर आयी थी
असल में यह हमारी प्रशासनिक व्यवस्था का रंग है
जहाँ नौकरशाहों पर नायलक कुनबा (ओफिस)
थोपा जाता उनकी उस विभाग में नियुक्ति कर के
जहां उन्हें मनचाहे कर्मठ और सक्षम कर्मचारी
चुनने का अधिकार नहीं है बल्कि कहीं से औड़म बौड़म
कर्मचारी लाकर उसे कुनबा तैयार करके दे दिया जाता है
जिसमें न तो काम की और न ही नए काम के तरीकों
को अपनाने की संभावना शेष बचती है और बेचारा अफसर
अच्छे नतीजों की चाह लिए संघर्ष करता रहता है
इसलिए सही कहावत कुछ ऐसे है
कहीं की ईंट कहीं से ले रोड़ा
ऊटपटांग सा कुनबा जोड़ा
भानमती को उसमें बिठाया
बेचारी को कहीं का न छोड़ा