बाजार में खड़े हो तो बच न सकोगे हुज़ूर
खरीददार न बन सके तो बिक जाओगे ज़रूर
बिकता था सामान कभी दूर शहर के पार
लांघ गया दहलीज़ घर में आ गया बाजार
दुनिया अब बाजार है और लोग खरीददार
नाते वफ़ा दोस्ती अब सब बन गए व्यापार
कोख बिक रही है अब कफन बिक रहे हैं
फूल की क्या बिसात अब चमन बिक रहे हैं
सपनों के वास्ते किसी के बिक गया कोई
दिलों की क्या बात एहसास बिक रहे हैं
ममता बिक रही ममता की बोली लगी है
हसरतों की बाजार में अब नुमाइश लगी है
व्यापार जानता है सिर्फ नफा या नुकसान
खरीददार चाहिए बिकता है हर इंसान
किस से मिले कैसे मिला अजी छोड़िये
खीसे में है रोकड़ा आप दाम लीजिये
लगाएंगे क्या बोली बिक रहा एक मजबूर
वर्ना दाम कहिये खुद का क्या लगाते हुज़ूर
बाजार में खड़े हो तो बच न सकोगे हुज़ूर
खरीददार न बन सके तो बिक जाओगे ज़रूर