क्रोध

किसी ने ऐसा कुछ कह दिया है
अहम् को मेरे झकझोर दिया है
दिल की धड़कन तेज़ हो रही है
गुस्सा भीतर मुझे जकड़ रहा है

नसें दिमाग की तन सी गयी हैं
सीने में भी घुटन कुछ नई है
खून का दौरा भी अब बढ़ रहा है
गुस्सा भीतर मुझे जकड़ रहा है

आँखों में बदले की चिंगारी है
नीचा दिखाऊं उसे तैयारी है
वहशी हमले को तड़प रहा है
गुस्सा भीतर मुझे जकड़ रहा है

वक़्त गुज़रा है मन भी सम्भला है
पारा जो ऊपर था कुछ उतरा है
पश्चाताप अब भीतर उमड़ रहा है
मेरा गुस्सा मुझ ही को डस रहा है

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