वक़्त के अलाव पर
जीवन की खीर मंद मंद पक रही थी
माँ ने चूल्हे पर चढ़ाई
पिता ने लकड़ी सुलगाई
खीर मेरी खुशियों की
नसीब की हांड़ी में यूँ पक रही थी
वक़्त के अलाव पर
जीवन की खीर मंद मंद पक रही थी
मेहनत के चावल और
ममता का था दूध
माँ हांड़ी को ढक्कन से ढक रही थी
वक़्त के अलाव पर
जीवन की खीर मंद मंद पक रही थी
सब्र नहीं होता था
माँ कहती मुँह जलेगा
पर लार लगातार टपक रही थी
वक़्त के अलाव पर
जीवन की खीर मंद मंद पक रही थी
दिन रात की चक्की
भूल गया था मैं
खीर तो अब भी पक रही थी
वक़्त के अलाव पर
जीवन की खीर मेरी मंद मंद पक रही थी
सब्र का गला घुट गया
चैन जब रुंधने लगा
मायूसी दामन को जब झटक रही थी
देखा मेरी बेटी
ड्राई फ्रूट डाल कर मीठी गाढ़ी खीर को
मेरे आज की प्लेट में परस रही थी
वक़्त के अलाव पर
जीवन की खीर मेरी मंद मंद पक रही थी
खीर बड़ी मस्त है
स्वाद लाजवाब है
रूह भगदड़ में यूँ ही भटक रही थी
वक़्त के अलाव पर
जीवन की खीर मेरी मंद मंद पक रही थी