कितनी कोशिश करता हूँ पर बाज नहीं तुम आती हो
पब्लिक प्लेस घर या सड़क हर जगह शुरू हो जाती हो
कहना मान लो मेरा आफत में आ गया दम
मजबूरी में मेरा वर्ना निकल जाएगा
फुसकी पटकी बम
फुसकी पटकी बम
फुसकी पटकी बम
चंद रोज़ से वैसे ही अपना मन हो गया अनमना है
रोज रोज की दावत से ढीला हुआ घुटन्ना है
ढक्कन हो गया लूज़ अब मान भी जाओ तुम
मजबूरी में मेरा वर्ना निकल जाएगा
फुसकी पटकी बम
फुसकी पटकी बम
फुसकी पटकी बम
अंदर की हलचल कहीं चेहरे पर न दिख जाये
ऐसा न हो बाँध सब्र का यहीं टूट कर गिर जाए
अब रहम करो देखो फट पड़ेगा बम
हालत पतली में जो मेरा निकल गया
फुसकी पटकी बम
फुसकी पटकी बम
फुसकी पटकी बम