याद आती हैं रेलगाड़ी की स्लीपर क्लास की सीटें
ज़िन पर हम खा पीकर सो जाते थे चादर खींचे
एक सीट पर पांच जने बैठा करते थे चिपक कर
सीट का मालिक लेटा रहता अपने दांत पीस कर
नीद नही आती पर सोया रहता अंखियां मीचे
याद आती हैं रेलगाड़ी की स्लीपर क्लास की सीटें
खाना पीना सोना और फिर खा पीकर सो जाना
बातचीत से आपस में मेलजोल बढ़ जाना
उन तारों ने हैं कितने दिल के रिश्ते सींचे
याद आती हैं रेलगाड़ी की स्लीपर क्लास की सीटें
अदरक वाली चाय की चुस्की चाहे जो भी खाओ
आजादी का असली मतलब स्लीपर क्लास में पाओ
पिंजरे का पन्छी जैसे बैठा ऐसी डिब्बे में
सोच रहा हूँ क्या पाया क्या छोड़ आये हैं पीछे
याद आती हैं रेलगाड़ी की स्लीपर क्लास की सीटें