मेरी ज़िन्दगी का मक़सद था क्या पाया क्या है खोया
कहीं ठहरूं सुकून में जीऊं नहीं ऐसा वक़्त आया
तुम जो मिले हो अब तो दुनिया मेरी बदल गयी है
हो अगर मुनासिब मैं तुम्हारे संग चलना चाहता हूँ
तुम सिखा दो न मुझको मैं सब भूल जाना चाहता हूँ
मैं उलझा रहा खुदी में तुमने लम्हे जिए हैं
मैंने चाहा जीतूं जहाँ को दिल तुमने फतह किये हैं
हर आस मेरे दिल की तुम्हारे साथ में ढल गयी है
हो अगर मुनासिब मैं तुम्हारे संग चलना चाहता हूँ
तुम सिखा दो न मुझको मैं सब भूल जाना चाहता हूँ
मैं अँधा एक कुआँ हूँ तुम साफ़ जल की हो धारा
तुम ठहरा हुआ समंदर बादल मैं एक आवारा
मेरी रूह के सुकून को शे तुम्हारी मिल गयी है
हो अगर मुनासिब मैं तुम्हारे संग चलना चाहता हूँ
तुम सिखा दो न मुझको मैं सब भूल जाना चाहता हूँ