घर बनने की आस में
वीरान पड़े मकान
खुद के वज़न से लाचार
सूरमां पहलवान
देवालयों की भीड़ में
गुम हुए भगवान्
हमने देखे है
बारिश की आस में
आसमां तकते किसान
भेड़ियों से वहशी
शक्ल से इंसान
जलते हुए जंगल
चीखते बियाबान
हमने देखे है
देखी है हमने अपनों की
बदली सी फितरत
तार तार अस्मत और
उसपे फूटी किस्मत
ज़िन्दगी के खेल तमाम
बद से बदसूरत
हमने देखे है
देखा हमने उगते सूरज को
पानी से नहलाते
सुनसान दरमियानों में
पत्थरों को गाते
चोरों के बाज़ार में
बोली लगाते मोर
हमने देखे है